http://www.hindusthangaurav.com/ujjwal.asp भारत में विज्ञान की उज्जवल परम्परा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
देश में में सर्वसाधारण लोगों मे यह धारणा प्रचलित है कि विज्ञान के क्षेत्र में प्रकाश की प्रथम किरण पश्चिम के आकाश में ही फूटी थी और इस कारण समूचे विश्व में विकास चक्र गतिमान हुआ । पूर्व के आकाश में विज्ञान के क्षेत्र में अन्धकार व्याप्त था । इस धारणा के कारण मात्र पश्चिम का अनुकरण करने की वृत्ति देश में दिखाई देती है । परिणामस्वरूप हमारी कोई वैज्ञानिक परम्परा थी , विज्ञान दृष्टि थी इसका कोई ज्ञान न होने से आज के विश्व में हमारी कोई भूमिका हो सकती है, इस विश्वास का अभाव आज चारों ओर दिखाई देता है । | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
परन्तु 20 वीं सदी के प्रारम्भ में आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय , ब्रजेन्द्रनाथ सील , जगदीश चन्द्र बसु , राव साहब वझे आदि विक्षनों ने अपने गहन अध्ययन के द्वारा सिद्ध किया कि भारत मात्र धर्म दर्शन के क्षेत्र में ही नहीं अपितु विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में भी अग्रणी था । इतना ही नही तो हमारे पूर्वजों ने विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय किया था जिसमें से उत्पन्न विज्ञान दृष्टि के कारण विज्ञान का विकास जैवसृष्टि के अनुकूल व मंगलकारी रहने की दृष्टि प्राप्त हुई जिसकी आवश्यकता आज का विश्व भी अनुभव कर रहा है । | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इसी दिशा में आगे चलकर अनेक विद्वानों ने और अधिक प्रमाणों के साथ प्रचीन भारतीय विज्ञान को विभिन्न पुस्तकों में व लेखों में अभिव्यक्त किया इनमें विशेष रूप से आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की हिन्दु कैमेस्ट्री , ब्रजेन्द्रनाथ सील की " दी पॉजेटिव सायन्स ऑफ इन्स्टीट्यूट हिन्दूज " , राव सा.वझे का " हिन्दी शिल्प शास्त्र " तथा धर्मपालजी की " इण्डियन सायन्स ऍण्ड टेक्नॉलॉजी इन दी एटीन्थ सेंचुरी " में भारत में विज्ञान व तकनीकी परपंराओं को उद्घाटित किया गया है । वर्तमान में संस्कृत भारती ने संस्कृत में विज्ञान तथा बॉटनी, फिजिक्स, मेटलर्जी, मशीन्स , केमिस्ट्री आदि विषयों पर कई पुस्तकें निकालकर इस विषय को आगे बढ़ाया है । इसके अतिरिक्त बंगलौर के एम.पीत्र राव ने विमानशास्त्र व वाराणसी के पीजी डोंगरे ने अंशबोधिनी पर विशेष रूप से प्रयोग किए । विज्ञान भारती मुम्बई व पाथेय कण जयपुर ने उपर्युक्त सभी प्रयासों को संकलित रूप से समाज के सामने लाने का प्रयत्न किया । डॉ. मुरली मनेहर जोशी के लेखों, व व्याख्यानों में प्राचीन भातीय विज्ञान परम्परा को प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया गया है । इसके अतिरिक्त आज की सबसे बड़ी आवश्यकता विज्ञान व अध्यात्म के समन्वय की दिशा में फ्रीटजॉफ काप्रा, ग्रेझुकोवव, प्योफ्रीच्वे तथा रामकृष्ण मिशन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी रंनाथानंदजी एवं स्वामी जितात्मानंदजी आदि के अनुभवो कें व व्याख्यानों से भारतीय विज्ञान दृष्टि एवं उसका वैश्ष्ट्यि जगत् कें सामने उद्घाटित हो रहा है । | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अनेक विद्वान् इस दिशा में चितंन व प्रयोग कर रहे हैं इस साहित्य को पढ़ने पर आज की पीढ़ी को एक दिशा मिल सकती है , उसके मन में स्वाभिमान का जागरण हो सकता है और अपनी विज्ञान दृष्टि से विश्व को भी उन अनेक समस्याओं से मुक्ति दिलाई जा सकती है जिसे आज मात्र भौतिक विकास के कारण वह अनुभव कर रहा है । इन सब विद्वानों की लिखि कुछ पुस्तकों और लेखों के आधार पर इसी धारणा को निर्मूल सिद्ध करने के लिए श्री सुरेश जी सोनी ने भारत में विज्ञान की उज्जवल परंपरा एक पुस्तक भारत में विज्ञान की उज्जवल परम्परा लिखी जिसके कुछ अंशों को आपके सामने लाया जा रहा है । विमान विद्या
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Friday, May 21, 2010
भारत में विज्ञान की उज्जवल परम्परा
Thursday, May 13, 2010
उष्ट्रानाम विवाहेषु
उष्ट्रानाम विवाहेषु गीतं गायन्ति गदार्भा,
परस्परं प्रशंसति अहो रूपं अहो ध्वनि
परस्परं प्रशंसति अहो रूपं अहो ध्वनि
ऊंट की शादी में गधा गीत गता है, और दोनों एक दुसरे की प्रसंसा करते है की वाह तेरा क्या रूप है वाह तेरी क्या आवाज़ है ।
काफी कुछ एसा ही हो रहा है, इश्वर का गियान फ्री में बटने वाले ब्लोगर भाइयों के साथ।
जबसे उसी ब्लोगर के शब्दों में "मोहक-मुस्कान स्वामी" ने उसके एक एक खोते कारनामे की पर्दाफास किया है, की कैसे वोह वेदों-सस्त्रो के उलटे सीधे अर्थ करके बेवकूफ बनाने की कोशिः कर रहा था। कोई दुसरे ब्लोगर अपना टाइम ख़राब करने वहन नहीं झाँक रहा तो अब वोह नाम ले ले कर कभी आका- ऐ-महाजाल का नाम लेकर पोस्ट लिखता है ,कभी अमित जी (मोहक-मुस्कान स्वामी), कभी किसी का तो कभी किसी का फिर भी भाप्दे की कोई नहीं सुन रहा तो , वे पांच-सात जाने ही आपस में कमेन्ट कर कर के काम चला रहे है और एक एक जाना ही पञ्च दस कमेन्ट कर रहा है ।
इसे कहते है दूध का दूध पानी का पानी । मेरी सभी ब्लोगरों से विनम्र अपील हई की उन लोगो के ब्लॉग पे गलती से चले भी जाये तो बिना कमेन्ट करे ही वापस आजाये , मैं भी अब एसा ही कने की सोच लिया हूँ
Wednesday, May 5, 2010
इस्लाम व कुरान पर भारत के महापुरुषों द्वारा दिए गए क्रातिकारी विचार
इस्लाम व कुरान पर भारत के महापुरुषों द्वारा दिए गए क्रातिकारी विचार | ||
| ऎसा कोई अन्य मजहब नहीं जिसने इतना अधिक रक्तपात किया हो और अन्य के लिए इतना क्रूर हो । इनके अनुसार जो कुरान को नहीं मानता कत्ल कर दिया जाना चाहिए । उसको मारना उस पर दया करना है । जन्नत ( जहां हूरे और अन्य सभी प्रकार की विलासिता सामग्री है ) पाने का निश्चित तरीका गैर ईमान वालों को मारना है । इस्लाम द्वारा किया गया रक्तपात इसी विश्वास के कारण हुआ है । कम्प्लीट वर्क आफ विवेकानन्द वॉल्यूम २ पृष्ठ २५२-२५३ | |
| मुसलमान सैय्यद , शेख , मुगल पठान आदि सभी बहुत निर्दयी हो गए हैं । जो लोग मुसलमान नहीं बनते थें उनके शरीर में कीलें ठोककर एवं कुत्तों से नुचवाकर मरवा दिया जाता था । नानक प्रकाश तथा प्रेमनाथ जोशी की पुस्तक पैन इस्लाममिज्म रोलिंग बैंक पृष्ठ ८० | |
| | इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम हैं । जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकती । श्रेष्ठ गैर मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता , जन्नत में अनेक औरतों और लौंडे होना आदि निन्दित उपदेश कुएं में डालने योग्य हैं । अनेक स्त्रियों को रखने वाले मुहम्मद साहब निर्दयी , राक्षस व विषयासक्त मनुष्य थें , एवं इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दसरा और कोई नहीं । इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ , दुराग्रह , ईर्ष्या विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया , न कि इसको बढ़ाने के लिए । सब सज्जनों के सामन रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है ।। सत्यार्थ प्रकाश १४ वां समुल्लास विक्रमी २०६१ |
| हिन्दू मुस्लिम एकता असम्भव है क्योंकि मुस्लिम कुरान मत हिन्दू को मित्र रूप में सहन नहीं करता । हिन्दू मुस्लिम एकता का अर्थ हिन्दुओं की गुलामी नहीं होना चाहिए । इस सच्चाई की उपेक्षा करने से लाभ नहीं ।किसी दिन हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ने हेतु तैयार होना चाहिए । हम भ्रमित न हों और समस्या के हल से पलायन न करें । हिन्दू मुस्लिम समस्या का हल अंग्रेजों के जाने से पहले सोच लेना चाहिए अन्यथा गृहयुद्ध के खतरे की सम्भावना है । । ए बी पुरानी इवनिंग टाक्स विद अरविन्द पृष्ठ २९१-२८९-६६६ | |
| | मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को यहां फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था । मुसलमानों की पृथक बस्तियां बसाई जा रहीं हैं । मुस्लिम लीग के प्रवक्ताओं की वाणी में भरपूर विष है । मुसलमानों को अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए । मुसलमानों को अपनी मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गया हैं वे ही पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं , क्योंकि मुसलमान देश के विभाजन के अगुआ थे न कि पाकिस्तान के वासी । जिन लोगों ने मजहब के नाम पर विशेष सुविधांए चाहिंए वे पाकिस्तान चले जाएं इसीलिए उसका निर्माण हुआ है । वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं । हम नहीं चाहते कि देश का पुनः विभाजन हो । संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार । |
| | हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है । यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं । साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा । विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी । पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है । मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है । कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है । मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है । इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता । संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया । कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है । गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है । इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं । धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते । मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती । वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते । प्रमाण सार डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड १५१ |
| पाकिस्तान बनने के पश्चात जो मुसलमान भारत में रह गए हैं क्या उनकी हिन्दुओं के प्रति शत्रुता , उनकी हत्या , लूट दंगे, आगजनी , बलात्कार , आदि पुरानी मानसिकता बदल गयी है , ऐसा विश्वास करना आत्मघाती होगा । पाकिस्तान बनने के पश्चात हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम खतरा सैकड़ों गुणा बढ़ गया है । पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ बढ़ रही है । दिल्ली से लेकर रामपुर और लखनउ तक मुसलमान खतरनाक हथियारों की जमाखोरी कर रहे हैं । ताकि पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर वे अपने भाइयों की सहायता कर सके । अनेक भारतीय मुसलमान ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान के साथ लगातार सम्पर्क में हैं । सरकारी पदों पर आसीन मुसलमान भी राष्ट्र विरोधी गोष्ठियों में भाषण देते हें । यदि यहां उनके हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे सशस्त्र क्रांति के खड़े होंगें । बंच आफ थाट्स पहला आंतरिक खतरा मुसलमान पृष्ठ १७७-१८७ | |
| ईसाई व मुसलमान मत अन्य सभी को समाप्त करने हेतु कटिबद्ध हैं । उनका उद्देश्य केवल अपने मत पर चलना नहीं है अपितु मानव धर्म को नष्ट करना है । वे अपनी राष्ट्र भक्ति गैर मुस्लिम देश के प्रति नहीं रख सकते । वे संसार के किसी भी मुस्लिम एवं मुस्लिम देश के प्रति तो वफादार हो सकते हैं परन्तु किसी अन्य हिन्दू या हिन्दू देश के प्रति नहीं । सम्भवतः मुसलमान और हिन्दू कुछ समय के लिए एक दूसरे के प्रति बनवटी मित्रता तो स्थापित कर सकते हैं परन्तु स्थायी मित्रता नहीं । ; - रवीन्द्र नाथ वाडमय २४ वां खण्ड पृच्च्ठ २७५ , टाइम्स आफ इंडिया १७-०४-१९२७ , कालान्तर | |
| मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं मोपला और नोआखली के दंगों में मुसलमानों द्वारा की गयी असंख्य हिन्दुओं की हिंसा को देखकर अहिंसा नीति से मेरा विचार बदल रहा है । गांधी जी की जीवनी, धनंजय कौर पृष्ठ ४०२ व मुस्लिम राजनीति श्री पुरूषोत्तम योग | |
| मुस्लिम कानून और मुस्लिम इतिहास को पढ़ने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उनका मजहब उनके अच्छे मार्ग में एक रुकावट है । मुसलमान जनतांत्रिक आधार पर हिन्दुस्तान पर शासन चलाने हेतु हिन्दुओं के साथ एक नहीं हो सकते । क्या कोई मुसलमान कुरान के विपरीत जा सकता है ? हिन्दुओं के विरूद्ध कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा की क्या हमें एक होने देगी ? मुझे डर है कि हिन्दुस्तान के ७ करोड़ मुसलमान अफगानिस्तान , मध्य एशिया अरब , मैसोपोटामिया और तुर्की के हथियारबंद गिरोह मिलकर अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देंगें । पत्र सी आर दास बी एस ए वाडमय खण्ड १५ पृष्ठ २७५ | |
| छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू अपने ग्रंथ दास बोध में लिखते हैं कि मुसलमान शासकों द्वारा कुरान के अनुसार काफिर हिन्दू नारियों से बलात्कार किए गए जिससे दुःखी होकर अनेकों ने आत्महत्या कर ली । मुसलमान न बनने पर अनेक कत्ल किए एवं अगणित बच्चे अपने मां बाप को देखकर रोते रहे । मुसलमान आक्रमणकारी पशुओं के समान निर्दयी थे , उन्होंने धर्म परिवर्तन न करने वालों को जिन्दा ही धरती में दबा दिया । - डा एस डी कुलकर्णी कृत एन्कांउटर विद इस्लाम पृष्ठ २६७-२६८ | |
| मुसलमानों ने यह मान रखा है कि कुरान की आयतें अल्लाह का हुक्म हैं । और कुरान पर विश्वास न करने वालों का कत्ल करना उचित है । इसी कारण मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए , उनका वध किया , लूटा व उन्हें गुलाम बनाया । वाङ्मय-राजा राममोहन राय पृष्ट ७२६-७२७ | |
| मुसलमानों के दिल में गैर मुसलमानों के विरूद्ध नंगी और बेशर्मी की हद तक तक नफरत हैं । हमने मुसलमान नेताओं को यह कहते हुए सुना है कि यदि अफगान भारत पर हमला करें तो वे मसलमानों की रक्षा और हिन्दुओं की हत्या करेंगे । मुसलमानों की पहली वफादार मुस्लिम देशों के प्रति हैं , हमारी मातृभूमि के लिए नहीं । यह भी ज्ञात हुआ है कि उनकी इच्छा अंग्रेजों के पश्चात यहां अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने की है न कि सारे संसार के स्वामी व प्रेमी परमात्मा का का । स्वाधीन भारत के बारे में सोचते समय हमें मुस्लिम शासन के अंत के बारे में विचार करना होगा । - कलकत्ता सेशन १९१७ डा बी एस ए सम्पूर्ण वाङ्मय खण्ड, पृष्ठ २७२-२७५ | |
| अज्ञानी मुसलमानों का दिल ईश्वरीय प्रेम और मानवीय भाईचारे की शिक्षा के स्थान पर नफरत , अलगाववाद , पक्षपात और हिंसा से कूट कूट कर भरा है । मुसलमानों द्वारा लिखे गए इतिहास से इन तथ्यों की पुष्टि होती है । गैर मुसलमानों आर्य खालसा हिन्दुओं की बढ़ी संख्या में काफिर कहकर संहार किया गया । लाखों असहाय स्त्रियों को बिछौना बनाया गया । उनसे इस्लाम के रक्षकों ने अपनी काम पिपासा को शान्त किया । उनके घरों को छीना गया और हजारों हिन्दुओं को गुलाम बनाया गया । क्या यही है शांति का मजहब इस्लाम ? कुछ एक उदाहरणों को छोड़कर अधिकांश मुसलमानों ने गैरों को काफिर माना है । - भारतीय महापुरूषों की दृष्टि में इस्लाम पृष्ठ ३५-३६ | |
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